Ghazal social system
आदमी अपनी भावनाओं को काबू कर लिया है
और अपने दिमाग को खुद पर हावी कर लिया है
जज्बातों पे जीना अब अच्छा नहीं लगता है
खुद के नजरिए को अब फ़ायदे में कर लिया है
ये अच्छी-अच्छी बातें आज भी चर्चा में हैं सबकी
मुंह में जिंदा है मगर दिल से मुर्दा कर लिया है
व्यवस्था को बदलने की बातें होती है अक्सर
व्यवस्था में आते ही भ्रष्टाचार में हिस्सा कर लिया है
उसकी बातों पे यकीन करूं तो कैसे अब "राज"
जिसने चेहरे पे अब सियासत में मुखौटा कर लिया है !!!
Ghazal social system
जब भ्रष्टाचारी ही चिल्लाने लगे
भ्रष्टाचार बहुत है
तो समझा जा सकता है
भ्रष्टाचार से कभी मुक्ति नहीं मिल पाएगी !!!
नैतिकता का पतन
वहां बहुत है
जहां
ग़लत इंसान
खुद को बेहतर साबित कर देता है
एक चरित्रवान व्यक्ति से !!!
व्यक्ति गिर कर उठ जाता है
साहस से नहीं
निर्लज्जता से
बुरे होने के बावजूद
नाक ऊंची कर लेते हैं !!!!
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