सुख-दुख आधा-आधा Sukh-dukh-aadha-aadha

Sukh-dukh-aadha-aadha ईश्वर ने जिंदगी में सबकुछ दिया है । दुःख से लेकर सुख । धूप से लेकर छांव । और हम जिंदगी में इन्हीं दो चीजों के इर्द गिर्द भटकते रहते हैं । हमेशा उम्मीद लगाए बैठे रहते हैं कि वहां जाने से कुछ मिलेगा । यहां जाने से कही कुछ मिल जाएगा । परंतु मिलता कुछ नहीं है । 
कविता हिन्दी में 👇👇

Sukh-dukh-aadha-aadha

थोड़ा कम थोड़ा ज्यादा
सुख-दुख आधा-आधा

कभी फूल कभी कॉंटें
ईश्वर ने हम सबको बाॅंटें

जिंदगी इसी का नाम है
हर हाल में जीना हमारा काम है

कभी धूप तो कभी छांव
कभी शहर कभी गांव

निकल  गए जो तलाश में 
मगर ढ़ूंढ न पाए आसपास में

अपनी ही उम्मीदों से दबे हुए
संभल संभल कर चलते हुए

खुद ही तमाशा है अपनी ही लाश का 
संभल गए तो ठीक वर्ना जोकर है ताश का !!


सुख दुःख आधा - आधा

जीवन जीना सादा-सादा

चाहत अपनी सम्हालकर रखना
किसी पे मरना न ज्यादा 

कोई ग़म नहीं जिंदगी
तू मिली नहीं ज्यादा !!!

कटे पेड़ भी उग आते हैं
कटे पेड़ पे फूल आते हैं

तू धैर्य रखना प्यारे 
अंधेरी रात के बाद
सूरज निकल आते हैं !!!

सुख-दुख आधा-आधा
कभी कम कभी ज्यादा

कुछ तुम मेरे लें लो यदि प्रेम है
मेरा दर्द कम हो है जो ज्यादा

तुझे बस जिंदगी समझता हूं
साथ रहो आराम मिलेगा ज्यादा !!!

बंटा हुआ है
समय
दिन और रात में
जैसे बंट जाता है
जीवन
सुख-दुख में
इसलिए तुम्हें स्थिर रहना चाहिए 
जीवन में !!!

सोच विचार में समाहित जीवन
दुःख को ज्यादा ध्यान दिया
सुख के बड़े हिस्से आए
लेकिन छोड़ दिया
जीवन
मात्रात्मक या संख्यात्मक
सुख-दुख बराबर
लेकिन आदमी
ग़लती करते हुए
डुबो रहा है
जीवन
सिर्फ दुःख में
और छोटे से जीवन
दुःखों का घर बना दिया
अपना कातिल बना दिया !!!!

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Sukh-dukh-aadha-aadha


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