करोना और लाकडाउन corona and lockdown poem

corona and lockdown poem 

 दिन गुजर गया

रात गुजर गई

लॉकडाउन क्या लगा

तबीयत बिगड़ गई

न जाने कब क्या होगा

उदासी घिर गई !!!

corona and lockdown poem

मानव का विकास 

या पश्चाताप 

एक कमरे में सीमित हो गई 

जो जी न सका 

वो दो गज जमीन पर सिमट गई !!!!


विकास किया 

या शोध किया 

मानव ने प्रयोग किया 

जीवन सम्हालना धीरे-धीरे 

लेकिन नष्ट करना 

एक क्षण में !!!!





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