प्यासे मन से प्यास मिटाने चला हूॅं
प्यासे मन से प्यास मिटाने चला हूॅं
इश्क की राहों में खुद को मिटाने चला हूॅं
तेरी एक नज़र सोया अरमान जगा दिया
सीने में लगी आग को बुझाने चला हूॅं
मेरी बेचैनी खींच ले जाती तेरी गलियों में
मैं तेरी एक झलक पाने चला हूॅं
ठहरो मेरे पास तुम्हें पलकों में सजा लूॅं
न घिरे तनहाई मैं ख्वाब सजाने चला हूॅं
वक्त कुछ पल ठहर जा मेरे पास ज़रा
इत्मीनान से उसकी बाहों में मरने चला हूॅं
---राजकपूर राजपूत''राज"
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर
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