The poem Wants to Tire you Out
थकाना चाहता है
एक विचार
ज्ञानियों की
बरबस ही
आकर मेरे विचारों में
जैसे तैसे
अभिव्यक्ति के नाम पर
बिना जिम्मेदारी के
कह देने वाले
और मेरा मन का
खींचा जाना
उस ओर व्यर्थ के
सोच में पड़ना
हालांकि जो सोच नहीं पाते
वो खुद को
उस विचार अनुकूल हो जाते हैं
बेवजह
आंदोलित हो कर !!!
The poem Wants to Tire you Out
कुछ लोग
कैसे लिखेंगे
पहले से तय है
बादलों के घिरने के बाद भी
बरसात नहीं लिखेंगे
रोता हुआ आदमी का दर्द नहीं दिखेंगे
कटा हुआ पेड़
अलग हो गया है
जड़ से
नहीं दिखेंगे
उन्हें दिखाई देगा
धर्म में पाखंड
शिक्षा में समझदारी
गैरों में बुराई
अपनी नहीं दिखेंगे
क्योंकि वो तर्कशील बुद्धिजीवी हैं
वैज्ञानिकता ओं से भरें बुद्धि
आलोचक हैं
कर्मशील नहीं !!!!!
तय था
मुंह खोलेंगे
ज्ञान विज्ञान
उसके हिसाब का
खोलेंगे
अपनी बिरादरी
अपना समाज
चुप रहकर
सियासी पंथ
हो हल्ला कर
डोलेंगे
बोलेंगे !!!!!
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