इतना तुम्हें याद भी नहीं You Won't Remember the Poem

You Won't Remember the Poem इतना तुम्हें याद भी नहीं - आदमी भूल जाता है । कहां जाना है । मंजिल उसकी क्या है ? क्या करना है क्या नहीं करना है । इसी कशमकश में सोच में पड़ जाता है । और अपनी मंजिल भूल, ठहर जाता है जबकि दुनिया निरंतर आगे आगे बढ़ रही है । 

You Won't Remember the Poem

इतना तुम्हें याद भी नहीं

यह विश्राम का समय नहीं
इतना तुम्हें याद भी नहीं
सूरज की किरणें निकल गई है
ये सारी दुनिया जाग गई है
अभी कोई सोने का समय नहीं
इतना तुम्हें याद भी नहीं
पक्षी उड़ चले हैं आसमान में
अपनी दिनभर की तलाश में
निरंतर चलते जाना है मंजिल तक
कहीं ठहरने का तुम्हें नहीं
यह विश्राम का समय नहीं
इतना तुम्हें याद भी नहीं
दुनिया चल रही है निरंतर
सूर्य, चंद्रमा, सितारे लगातार
नदियां बहती उछल उछल कर
इन्हीं जैसे तुम्हें रूकना नहीं
इतना तुम्हें याद भी नहीं !!!


तुम्हें याद होगा 

मेरा प्यार

जिसे तुमने 

अल्प विराम की तरह 

हर जगह लगाया 

तुमने 

और मुझे हमेशा लगा 

तुम्हारे प्यार में 

पूर्ण विराम नहीं है  !!!!

-राजकपूर राजपूत 

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You Won't Remember the Poem



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