कभी- कभी सोचता हूॅं Sometimes i Think about Poetry

Sometimes i Think about Poetry 


कभी-कभी सोचता हूॅं
किसी डॉक्टर के घर में
लगे चित्रों को देखकर
मानवों के कंकाल को
निहार कर
तब अहसास हो जाता है
कोई आदमी खास नहीं होता है
अस्थि पंजर है
जिसके भीतर
मांस और हड्डियॉं हैं
कुछ संवेदनाएं
कुछ भावनाएं
क्रियाशीलता के लिए
जीवन के अहसास के लिए
जिसमें एक चेतन तत्व
समाहित है
ऊर्जा स्वरूप में
सतत सभी
भावों का स्वाद चखने के लिए
अलग-अलग प्रतीत होते हैं !!!!

Sometimes i Think about Poetry 



कभी-कभी सोचता हूं 
लोग पानी बचाने का ज्ञान देता है 
खुद कितना बचा लेता है 
प्रेम करने का संदेश 
ओशो ने भी कहा था 
लेकिन उससे नहीं 
जो प्रेम करना नहीं जानते हैं 
उससे कहा जो प्रेम करते हैं 

समझा उसे गांधी ने 
जो समझते थे 
जो नहीं समझते थे 
उसके लिए चुप थे 
इसलिए गांधी से महात्मा बन गए 
उसका विरोध नहीं हुआ 
जिस स्तर पर 
कट्टरता करते हैं 

कभी-कभी सोचता हूं 
सारे ज्ञान केवल 
समझदार लोगों के लिए है 

जिनकी संख्या कम है 
और जो चुप हैं 
बुरे इंसानों के सामने 
इसलिए महान है 
ज्ञान भी 
व्यक्ति भी !!!!


कभी-कभी सोचता हूं 
पृथ्वी इसलिए नहीं घुमती 
कि उसे अच्छा लगता है 
बल्कि इसलिए घुमती है 
रात दिन दोनों हिस्सों में बनता है 
जैसे सुख-दुख 
हमारे !!!!


कभी-कभी सोचता हूं 
पेड़ों को अनायास नहीं उगना चाहिए 
हर जगह 
इसलिए नहीं उसकी जरूरत है 
बल्कि इसलिए 
उसने अपनी क़ीमत खोई है 

भीषण गर्मी से बचने के लिए 
लोग पेड़ का सहारा नहीं 
अपने कुलर एसी ढूंढते हैं 
गर्मी तक 
और पेड़ उग आते हैं 
गैर-जरूरी की तरह!!!!

---राजकपूर राजपूत




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