प्यार करो हवस नहीं Love not Lust Poetry

Love not Lust Poetry 
तर्क करो बहस नहीं
प्यार करो हवस नहीं

उससे हल कभी नहीं होगा
जब सुनने का साहस नहीं

दिल में वही उतरेगा
जिसके मन में क्लेश नहीं

व्यर्थ की बहस चलती रही
किसी का जीवन खास नहीं

जीवन उसी का सफल होगा
जो हॅंसते हैं कभी उदास नहीं !!!!

Love not Lust Poetry



जिसे वो अभी तक
आलोचना करते रहे
उसे दुश्मन समझा
जिस पर चुप था
उसे दोस्त समझा
सारी बुराई दुश्मनों में देखा
और दोस्तो में बुराई न देखा
प्रेम की यही परिभाषा है
प्यार अंधा होता है
लेकिन उसने दुश्मनों के लिए
आंखें खोली थी !!!!

तर्क उसके सारगर्भित थे
मगर लागू दुश्मनों पर किया
दोस्तों पर छुट दे रखी है
तर्क उसने ऐसे ही दिया !!!

उसकी महानता यही थी
अपनो के लिए नहीं कही थी 
दुश्मनों पर तर्क सही था 
मगर दोस्तों पर भी लागू नहीं था
सियासत बुद्धि और चालाकी से 
अपनो को बचा लिया था !!!!

उसके तर्कों में चालाकी थी 
दूसरों को समझाने के लिए
खुद तो पहले से सेट था
अपने एजेंडे के लिए
इसलिए ज्यादा बदलाव नहीं आया
दुनिया में आजकल !!!!
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उसे विश्वास था
वो बेहतर है
कई मामलों में
अन्य लोगों से
इसलिए आलोचना करते थे
नफरतों भरी
जैसे वहीं एक महान है
दुनिया में !!!

---राजकपूर राजपूत''राज''

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