तेरी ऑंखें

ऑंखों ही ऑंखों में
जो बातें हो रही थी
दो दिलों की बातें
हो रही थी
हृदय में अपनापन 
जाग उठा था
इसलिए चुप था
तेरी बातें सुन रहा था
तेरी ऑंखों ने स्वीकृति दी थी
मेरे प्यार की
और धीरे धीरे
मेरा प्यार उठ रहा था
तेरे लिए
और मैं खो रहा था
तेरी ऑंखों में
---राजकपूर राजपूत''राज''
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