एक अवसाद था दो हजार बीस

एक अवसाद था दो हजार बीस में
निकल गया जो करोना के टीस में

बंद होकर रह गई थी जिंदगी सबकी
अजीब बेचैनी और डर करोना के बीच में

नववर्ष की नवकिरण से अवसाद छट जाएगा
इसी उम्मीद में आ गए हैं दो हजार इक्कीस में
---राजकपूर राजपूत''राज''

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ