हम मिले थे कभी यही पर

हाॅ,सब कुछ है यही पर
मगर आदमी ढूॅ॑ढ़े कही पर

हम भटकते हैं जीवन भर
आदमी की निगाहें कहीं पर

जिसके ख्याल में खोया रहा
वो मिले नहीं मुझे कहीं पर

हॅ॑सते चेहरे पे भी दर्द देखें हैं
सितारें टूट के गिर जाते हैं जमीं पर

ये पेड़ कभी हरे-भरे थे "राज़"
हाॅ॑ हम मिले थे कभी यही पर
---राजकपूर राजपूत''राज''
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