कुछ तो था

कुछ तो था
तेरे मेरे रिश्तों में
जिसे परिभाषित
नहीं कर पाया, 
कभी...
और ना ही समझ पाया
तेरे मेरे बीच के रिश्तों को
कभी... !!
क्यों-
हमेशा जुड़ाव सा लगता है
तुम्हें देख के
दर्द सा रहता है
हृदय के भीतर
तुम्हें पाने के लिए
एक करूणा जाग जाती है
ऑ॑खें नम हो जाती है
क्यों अपना सा लगते हो
हरदम पास लगते हो
मेरे..!
जिसे मैं बता नहीं सकता
दिखा नहीं सकता
और ना ही जता सकता हूॅ
किसी को
तेरे मेरे रिश्तों को.…!!!!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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