प्यार कभी
पंगु नहीं होता
प्यार कभी
स्त्री-पुरुष के
संदर्भ में नहीं होता
क्योंकि
जिसका हृदय पसीजता है
प्यार सीचता है उसे
जिसके हृदय में
करूणा है
कोमल भावों के
उसके अंदर ही
प्यार की शुद्धता है !!!
वादों के भरोसे
प्यार नहीं किया जाता है
जितना हो सके
बस निभाया जाता है
प्यार को दिखाया नहीं जाता है
छिपाया जाता है
जितना हो सके !!!
प्यार
ज्यादातर सम्मान से जाहिर होता है
जो सब्जी तुम्हें पसंद हो
जरूरी नहीं !!!!
भार
यदि तुम जान गए
प्रेम
एक स्त्री और पुरुष हो
तो अलग हो
एक दूसरे से
चाहते अलग होगी
जबकि प्रेम में
केवल जाना जाता है
परस्पर एक
भाव और ख्याल
समाहित होते हैं
एक दूसरे के भीतर
जो एकात्म निर्णय लेते हैं !!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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