अवहेलना भाग ११

अनीता की बातों को सुनकर कल्याणी को बहुत थकावट महसूस हो रही थी और कुछ सुनना चाहती थी ,, लेकिन उसे अच्छा नहीं लग रहा था । पूरे शरीर में थकावट दौड़ गई थी । वो अपने कमरे में आकर ऐसे लेट गई मानों शरीर में कोई जान ही नही है, और सोचने लगी-
 आखिर क्यों अनीता मेरे बारे में इस तरह से कह रही है !!सासु मां कह रही थी, उसे मैं समझ सकती हूं । उसके हृदय में मेरे प्रति नफरत है । लेकिन अनीता क्यों कह रही थी ?क्या वो भी नफ़रत रखती है, मेरे प्रति । इन्ही सवालों का जवाब वो ढूंढ- ढूंढ के परेशान हो रही थी । 
अभी तक तो अनीता उससे अच्छी बातें करती थी । लेकिन आज जो सुना वो क्या थी ? 
फिर सोचती कि वह खुद ही गलत है । जिसकी वजह से सभी लोग उसकी बुराई करते हैं । शायद मैं बुरी हूं । मेरी सोच ही गलत है । तभी तो दीपक उससे नाराज़ रहते हैं ।घर वाले कभी उसे नहीं मानते हैं । अब नहीं करूंगी ऐसी गलती । खुद को विश्वास दिलाती । बार बार !!!

दिन इसी सोच में गुजर गया और जब रात हुई तो दीपक से किसी बच्चे की तरह कहने लगी- 
"दीपक मैं बुरी हूं क्या ? ना जाने क्यों मुझे महसूस होता है । "
दीपक उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया । वह चुपचाप लेटे रहे । मानों उसकी चुप्पी में स्वीकारोंक्ति थी ।  
"नाराज़ हो ,,, मुझसे, बातें नहीं करोगे । "
कल्याणी उसके पास आते हुए बोली और दीपक के शरीर को सहलाने लगी । 
कुछ देर दीपक यूं ही नाराजगी दिखा रहे थे । फिर क्या था ! कल्याणी के छुते ही यौन भावनाएं जागृत हो गई । और यौन भावनाओं के जागते ही प्रेम भावना भी जाग उठी । एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है । जो परस्पर एक-दूसरे से प्राप्त होते हैं । आवश्यकता ही रिश्तों का निर्माण करते हैं । 
कल्याणी को अपनी बाहों में भर लिया और बड़े प्यार से कहा -  
अब छोड़ो ये सब,,प्यार के समय ये सब बातें अच्छा नहीं लगते । तुम तो दिन भर ना जाने किस ख्याल में खोए रहते हो । अपने शरीर की भी चिंता नहीं करती हो । कभी आईने में देखना चेहरा अपना । कैसी लगती हो तुम ! जब ब्याह के आई थी उस समय और अब में कितना अंतर है । "
कल्याणी,दीपक के बातों से भाव विभोर हो गई ।उसकी आंखें भर आईं । यही सोच के कि वह उसका ख्याल रखता है । उसे दीपक पर बहुत प्यार आ रहा था । उसने खुद को दीपक के सामने समर्पित कर दिया । 
जब काम उत्तेजनाएं शरीर में दौड़ती है । उस समय बहुत प्यार आता है । ऐसी ऐसी बातें होती है , मानों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते हैं । संसार की सबसे अच्छी जोड़ी है जो एक दूसरे के लिए बने हैं । लेकिन ये प्यार क्षणिक है । जरूरतों की पूर्ति करने में सभी प्यार से बातें करते हैं लेकिन जब उसकी प्राप्ति हो जाती है तो लगाव नहीं रह जाते जो आवश्यकता के समय महसूस होते हैं । ना ही रूचि रख पाते हैं । शारीरिक अनुभूति नष्ट हो जाते हैं । अपनापन नहीं रह जाता है । जो शायद ! वासना की पूर्ति के समय बनते हैं । 
दीपक, अपनी इच्छा पूर्ति के बाद कल्याणी से अलग हो गए । जबकि उसकी इच्छा थी कि वह उससे और बातें करें । मन को तसल्ली जो मिल रही थी । उसके साथ पाके । लेकिन दीपक करवट बदल के सो गए । क्षणिका था उसका प्रेम जो ज्वार भाटे की तरह लहरों के साथ नीचे उतर कर शांत हो गया था ।
कल्याणी ,छत को निहारें लगी । कई सवाल खुद से पुछते । जिसका जवाब वो अभी भी ढूंढ नहीं पाई थी । दीपक शाय़द ! कभी समझ ही ना पाए । 
क्रमशः-
---राजकपूर राजपूत''राज''



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