प्यासी धरती Pyasi Dharti Kavita

Pyasi Dharti Kavita 
उस करिश्में का इंतजार है
जब बरसेंगे 
प्यासी धरती पर
बादल की बूंदें
सोचते ही
मन मयूर होके
नाचें,, झूमे
और बरसों से
तपती धरती से
सौंधी खुशबू उड़ेगी
पेड़ की टहनियों पर
धरती के तन पर
हरियाली बिछ जायेगी
प्यासी धरती की
प्यास बुझ जायेगी
उस करिश्में का इंतजार है !!

Pyasi Dharti Kavita


तुम मांगते हो
हर चीज
अपने अनुकूल
लेकिन बनते नहीं हो
सबके अनुकूल
बरसे हैं बादल
कहीं कम कहीं ज्यादा
कुपित हैं प्रकृति
कहीं कम कहीं ज्यादा !!!

हम कितने भरोसा करते हैं
प्रकृति को अपने अनुकूल करते हैं
मन चाहे मिल जाएं
वर्षा, ठंड, गर्मी
लेकिन हम नहीं बन पाते
जी नहीं पाते
प्रकृति अनुसार
गतिरोध बना कर
लड़ने को तैयार
रोज-रोज !!!

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-राजकपूर राजपूत 

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