तुम्हारा दोगलापन Your Hypocrisy Poem

Your Hypocrisy Poem 
स्मार्ट हो सकते हो
कुछ कपड़े कुछ लत्तों से
होशियारी हो सकते हो
कुछ बातों से
समझदारी झलका सकते हो
अपने व्यवहार से
अपने बर्ताव से
अपनी प्रमाणिकता 
अपनी उपयोगिता
सिद्ध कर सकते हो
सभ्यता की
इन सबके बावजूद
तुम्हारा चरित्र बाहर आता है
जिसे सामान्य आदमी
समझ नहीं पाता है
लेकिन..
दिल के अंदर से
तुम्हें पहचाना जाता है
मन में खटक जाता है
तुम्हारा दोगलापन !!!!

Your Hypocrisy Poem


कोई अपना उपयोग किया है
रिश्तों को
सच्चाई को 
भावनाओं को
इस तरह तोड़ा
मतलब निकाल के छोड़ा है
भरोसा नहीं होता है
किसी पर !!!

अभी भी आजमाते हैं

अपनी चालाकी को
रिश्ते बनाकर
अच्छाई और सच्चाई
बताकर
अभी भी बहलाते हैं
सहलाते हैं
अपने तर्कों 
फर्क कर जाते हैं
आदमी, आदमी से
धर्म, धर्म से
बेहतर होने की चक्कर में
गिर जाते हैं
दोगलापन दिख जाते हैं !!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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