बचपन के खेल

नादानियों में खेले वो हर खेल
जो दिल से था ।
मेरे बचपन के साथी 
मेरे बेहद करीब था ।

कुछ बड़ों की नकल थी
चेहरे पर हर पल खुशियां थी ,
उस समय मेरे पास ना अक्ल थी
किसी बात पे ना मनभेद था । 

जवानी के आते ही 
मेरे चेहरे की हंसी छीन गई ,
मेरी नादानियों की दुनिया 
मुझसे रूठ गई ।

कुछ दोस्त बेवजह दूर हो गए ,
कुछ जिंदगी की तलाश में मजबुर हो गए

बचपन के खेल


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