रिश्तों में

ज्यादा कठोर धरातल पर
खड़े हो जाने से
आदमी खुद ही
बंजर हो जाते हैं
अंकुरित नहीं हो पाते
नई बीज
नई पत्ती
निकल नहीं पाते
पत्थरों से

आदमी जब
हर चीज़ को
तर्क की कसौटी में
कसते हैं तो
प्रेम पराजित हो जाते हैं
हृदय सुख जाते हैं
कई सवालों का
जवाब नहीं पाते हैं
तलाशने पर
और खुद ही
दुविधा में
आ जाते हैं

आदमी जब
अपने हर लफ्जों से
लाभ-हानि का
हिसाब करते हैं
तो स्वाभाविक है
घाटा ही होगा
रिश्तों मेंं
प्रेम को

रिश्तों को निभाने के लिए
हृदय में प्रेम चाहिए
दो दिलों का मेल चाहिए
आत्म सम्मान के साथ
जिसे केवल
दो प्रेमी ही दे पाते हैं
हर दर्द को सह पाते हैं
सुकून के साथ
जिसे कोई
व्यापारी या बुद्धिजीवियों के द्वारा
समझा नहीं जाता
---राजकपूर राजपूत''राज''
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