रोज-रोज का ये सिलसिला रहा

रोज- रोज का ये सिलसिला रहा
शुक्र है तेरे होठों पे मेरा गिला रहा

बेशक वो मुझे ठुकरा दिया है लेकिन
मेरे नाम पे उसका दिल धड़कता रहा

अजीब ख्वाहिशें पाले बैठे हैं अब लोग
धीरे-धीरे जो अपना वजूद खोता रहा

पाना-खोना और ढूंढना मेरा है इतिहास
मेरी जिंदगी का यही सिलसिला रहा

---राजकपूर राजपूत''राज''
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