तनहा हुई जिंदगी ये किस मोड़ पे आ गए हम
यादों में समाए हैं धूल और कीचड़ से सने हाथ
खुशियाॅ॑ हुई गायब फ़िक्र चेहरे पे ले आए हम
छाॅ॑व की तलाश में दौड़ते रहे जिंदगी तेरे लिए
झूले पड़े थे जिस पेड़ पे उसे काटते आ गए हम
वो दिन भी क्या दिन थे जब चहकता था बचपन
उड़ गई चिड़िया अब और घोंसला तोड़ आए हम
ऐसा नहीं कि मैं तेरे लिए तड़पा नहीं हूॅ॑ रातभर
हालत ऐसी है इस दौर में मेरे खुदा क्या करते हम
राजकपूर राजपूत''राज''
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