मेरा प्रेम

मेरा प्रेम 


मेरा प्रेम
मौन था
अंतहीन गर्त में
दबा हुआ था
सोई अनुभूतियों मेंं
अलसाई हुई थी
जिंदगी मेरी
जिसमें कौन था
मेरा प्रेम
मौन था

तेरा स्पर्श से पहले

तुने जब छुआ
तब झंकृत हुई
मेरे अंतस में
पुलकित हुआ तन
डोल उठा मन
नसों में
सिहरन दौड़ गई
मेरे जिस्म में
रौशनी फैल गई
मेरा प्रेम
स्पूटित हुआ

तेरे स्पर्श से

उर्वरक मिल गया
मेरे अंतर तम को
लौ जल गया
पाकर तुझको

तेरे स्पर्श से

__ राजकपूर राजपूत'

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