लाख जिरह करने के बाद भी कुछ छूटा है

लाख जिरह करने के बाद भी कुछ छूटा है
इस दौर में भी आदमी को आदमी ने लूटा है

अब मछली,पंछी,पेड़ सबके वजूद खतरें में है
अपने लिए ही सही आदमी इसे भी तो लूटा है

हाॅ॑, ये बात अलग है कि समझदार है अब लोग
दिन में नहीं करते चोरियाॅ॑ रात को तो लूटा है

ये सच है उनके इरादों को समझने में देर लगेगी
दिमाग़ से अच्छे भले पर जज्बातों को तो लूटा है
---राजकपूर राजपूत'राज'



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