उसने किताब पढ़ के टेबल पे रख दिया

In today's era people ghazal 

उसने किताबें पढ़ के टेबल पे रख दिया
सारे रिश्तों को अब बाजार में रख दिया

In today's era people ghazal 


चंद गुलाब की पंखुड़ियाॅ॑ थी इश्क की
दबे हैं किताबों में जो कबाड़ी में रख दिया

भरोसा करें कैसे इस दौर के इंसानों पर
झूठ को सहुलियत के हिसाब में रख दिया

उसके जीने के तरीके मुझे पसंद नहीं
हर चीज़ पे सियासत रख दिया

मैं भी समझता हूॅं आज का दौर अलग है
खुलकर हंस नहीं सकते अनजान डर को रख दिया

वो इतने ही अच्छे हैं तो अपने वादे पे रहे
हर बात को बहस पे लाकर रख दिया 


वो चाहता तो यूं ही रिश्ते निभा लेते "राज़"
हक की लड़ाई में बात कोर्ट में रख दिया

वो आदमी एक ही था फिर चेहरा दो क्यों
बातें मीठी-मीठी, इरादें छूपा के रख दिया

ये उदासियाॅ॑ ये थकान कब तक रहेगी दोस्तों
कौन सा अनजान अरमानों को दिल में रख दिया

__राजकपूर राजपूत'राज'
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In today's era people ghazal



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