keval-tum-hi-nhin-the- लोगों को यह कहते हुए देखते हैं कि कलयुग, या बुरा समय आ गया है । जहां सत्य, कर्तव्य, ईमानदारी आदि का कोई मायने नहीं है । इसलिए वे खुद को वर्तमान समयानुसार बदल रहे हैं । छोड़ रहे हैं सत्य की राहें , अच्छी बातें । खुद बन गए हैं, बुरे । अपनी मानसिकताओं में खुद ही उलझे हुए । जबकि सूरज, चांद, धरती और आसमान नहीं बदले हैं । बदले हैं तो केवल लोगों के विचार । जिसके कारण सबकुछ बदला हुआ सा लगता है ।
keval-tum-hi-nhin-the
हर चीज़ सही थी
और हर चीज़
यही थी
सूर्य यही था
चंद्रमा भी यही था
गगन में तारे
पेड़ भी निराले
बहते नदी की धारे
फूलों में खुशबू
मैं और तुम
लेकिन शायद ...!
तुम नहीं थे
पहले जैसे इरादें नहीं थे
खुद को छुपाया है कहीं
बन गया है
कुछ और..!
क्यों मन इतने व्यथित हैं
क्यों दुनिया को देख चकित हैं
कुछ कामनाएं, कुछ उदासी से
कुछ अवहेलनाओं से
और कुछ नादानी से
तुम आ गए
इस जीवन में
न इस पार में
न उस पार में
जैसे जिंदगी
जी रहे हो बेकार में
और क्या मिल जाएगा
कितना दौड़ पाएगा
एक दिन खुद ही
थक जाएगा
तुम्हें टिकना चाहिए
मुझ पर या खुद पर
अवलंबन चाहिए
अपने प्रेम का
लेकिन नहीं..
तुमने काटना शुरू कर दिया
रिश्तों को
प्रेम को
खुद को खुद से दूर कर दिया
सबके महत्त्व को
छोटा कर दिया
मेरे प्यार के
परिभाषाएं बदल दी
तुमने दिशा मोड़ दी
सफर का
किसी अनजान चाहतों से
खुद को छुपा लिया
और मेरी चाहत का
मजाक बना दिया
क्यों....??
आज भी सभी यही थे
केवल तुम ही नहींं थे
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