बहुत हो गई दिल्लगी कुछ नाराजगी भी हो


बहुत हो गई दिल्लगी कुछ नाराजगी भी हो
जिंदा रहे इश्क जिसमें कोई धोखा ना हो

लोग समझ जाय इल्म की बात अच्छी है
झूठ बोले सियासतदान कोई ताली ना हो

बच के निकलने की आदत है जिंदगी तेरी
ख़ुदा करे किसी दिन सच का सामना भी हो

सहुलियत का रास्ता चुनना कायरों का है काम
मैं चाहता हूं सफ़र में फूल हो और कांटे भी हो

डर है कि दिल की आरजू कही रुकी ना रह जाए
खुल के जीओ जिंदगी मानों खुली किताब सी हो

जंग पड़े लोहे में धार तेज हो जाती है 'राज'
गर्म हो लोहा जिसमें हथौड़े की चोट बार-बार हो

__राजकपूर राजपूत'राज'
बहुत हो गई दिल्लगी कुछ नाराजगी भी हो

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ