प्रसन्नता एक ऐसी भावना है जिसे किसी भी रूप में, किसी भी स्थान से प्राप्त किया जा सकता है। यह हमें किसी मित्र, परिवार के सदस्य, जीवनसाथी, या यहां तक कि किसी जानवर, पेड़-पौधों से भी मिल सकती है। यह बशर्ते आत्मा का एक गहरा स्पर्श हो, एक सचेतन अनुभव हो। प्रसन्नता तभी तक स्थायी होती है, जब हम उसे अपने अंदर आत्मसात करते हैं और केवल बाहरी उपहारों या परिस्थितियों पर निर्भर नहीं रहते।
प्रसन्नता केवल किसी वस्तु या किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि हमारी मानसिक स्थिति से उत्पन्न होती है। अगर हम जीवन के अभावों या समस्याओं को देखकर निराश न हो, बल्कि उन्हें समझकर सुधारने का प्रयास करें, तो यही हमारे जीवन में खुशी का पहला कदम बनता है। जब हम अपनी असंतुष्टि को सकारात्मक दिशा में बदलने की कोशिश करते हैं, तो वही रोचकता और उत्साह को जन्म देता है। हमारी इच्छाएँ और सपने, जो हमें और अधिक खुश करने का वादा करते हैं, अगर हम उन्हें साकार करने का प्रयास करें, तो वही प्रसन्नता की ओर एक ओर कदम होता है।
इसके बावजूद, प्रसन्नता केवल चेहरे की हंसी तक सीमित नहीं होती। हंसी एक बाहरी प्रतीक है, जिसे हम दूसरों को दिखाने या अपने भीतर की बेचैनी को छुपाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन वास्तविक प्रसन्नता वह है, जो हमारे भीतर एक गहरी संतुष्टि और शांति का एहसास पैदा करती है। यह बाहरी दिखावे से परे होती है, और जब यह हमारे जीवन में आती है, तो यह किसी भी बाहरी स्रोत पर निर्भर नहीं होती। इसे हम अंदर से महसूस करते हैं, और यह हमारे अस्तित्व का एक अभिन्न हिस्सा बन जाती है।
The True Nature of Happiness and its Attainment
प्रसन्नता का वास्तविक रूप तब प्रकट होता है, जब हम अपनी सोच और भावनाओं में बदलाव लाते हैं। हमें यह समझना होगा कि खुशी हमेशा बाहरी चीजों में नहीं होती, बल्कि यह एक मानसिक और आंतरिक अवस्था है। जब हम स्वयं को समझते हैं, अपने कार्यों और विचारों में संतुलन लाते हैं, तो वही खुशी और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। यह स्थायी होती है, क्योंकि यह हमारे भीतर से उत्पन्न होती है, न कि किसी बाहरी घटना या वस्तु से।
अंततः, प्रसन्नता का अनुभव तभी संभव है, जब हम जीवन के छोटे-छोटे क्षणों में खुशी खोजें, उसे महसूस करें, और बिना किसी अतिरिक्त अपेक्षा के उसे स्वीकार करें। यही वह रास्ता है, जो हमें स्थायी और शुद्ध प्रसन्नता की ओर ले जाता है।
प्रसन्नता मनुष्य की मूल आकांक्षा है, किंतु विडंबना यह है कि वह प्रायः इसे बाहर खोजने का प्रयास करता है। वास्तव में प्रसन्नता का स्रोत बाहरी परिस्थितियों में नहीं, बल्कि व्यक्ति की आंतरिक चेतना में निहित होता है। इसलिए सच्ची और स्थायी प्रसन्नता के लिए व्यक्ति का अंतर्मुखी होना आवश्यक है। अंतर्मुखिता का आशय आत्मचिंतन, आत्मस्वीकृति और अपने कर्म से जुड़ाव से है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति स्वयं का मूल्यांकन दूसरों की दृष्टि से नहीं, बल्कि अपने विवेक और संतोष से करता है।
इसके विपरीत बाह्यमुखिता प्रायः सामाजिक स्वीकृति और प्रशंसा पर आश्रित होती है। यह अंतर्मुखी प्रसन्नता का एक सहायक माध्यम हो सकती है, किंतु उसका विकल्प नहीं बन सकती। बाहरी मान्यता परिस्थितिजन्य होती है—आज है, कल नहीं। इसलिए यह लक्ष्मण रेखा की तरह स्थायी और अकाट्य नहीं होती। जो व्यक्ति अपनी प्रसन्नता को केवल दूसरों की प्रतिक्रिया पर आधारित करता है, वह भीतर से अस्थिर रहता है और थोड़ी-सी उपेक्षा या आलोचना से विचलित हो जाता है।
यदि हम एक खिलाड़ी को देखें, तो उसकी खेल-कला तभी उत्कृष्ट बनती है जब वह पूरे मन से खेल में डूबा होता है। उसकी एकाग्रता, अनुशासन और आनंद ही उसके कौशल को निखारते हैं। दर्शकों की तालियाँ और प्रशंसा उसके खेल का परिणाम होती हैं, कारण नहीं। यदि वह केवल वाहवाही के लिए खेले, तो उसका ध्यान खेल से हटकर अपेक्षाओं पर केंद्रित हो जाएगा, जिससे उसकी कला की स्वाभाविकता समाप्त हो सकती है। वास्तव में उसकी सच्ची जीत बाहरी पुरस्कारों में नहीं, बल्कि अपने प्रदर्शन से मिली आंतरिक तृप्ति में होती है।
निस्संदेह, बाहरी प्रशंसा व्यक्ति को प्रेरित कर सकती है और निरंतरता बनाए रखने में सहायक भी हो सकती है। किंतु यह प्रेरणा तभी सार्थक होती है जब उसका आधार आंतरिक प्रसन्नता हो। केवल प्रशंसा के सहारे चलने वाला व्यक्ति शीघ्र ही थक जाता है, जबकि अपने कर्म में आनंद खोजने वाला व्यक्ति बिना किसी अपेक्षा के निरंतर आगे बढ़ता रहता है। सफलता से उत्पन्न प्रसन्नता तभी स्थायी होती है जब वह आत्मसंतोष से जुड़ी हो, न कि केवल सामाजिक मान्यता से।
अंततः, सच्ची प्रसन्नता वही है जो व्यक्ति को बाहरी उतार-चढ़ाव से अप्रभावित रखे। जब मनुष्य अपने भीतर आनंद का स्रोत खोज लेता है, तब वह स्वतंत्र हो जाता है—प्रशंसा में अहंकार से और आलोचना में हीनता से मुक्त। यही अंतर्मुखी प्रसन्नता जीवन को संतुलित, अर्थपूर्ण और शांत बनाती है।
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