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आजकल के इंसान -
सब बिक रहा है
लेकिन कौन खरीद रहा है
व्यापारी हैं सभी
मौके की ताक में दिख रहा है
भरोसा नहीं है यहां किसी पर
वक्त आने पर
एक- एक आदमी गिर रहा है
लोग यूं ही बदनाम नहीं है
उसके खतरनाक इरादे दिख रहा है
मतलब है और काम निकल गए तो
गैरों सा आदमी दिख रहा है
उसे लाज नहीं है अब जरा सी
आते हैं नजदीक दोस्त बनके मगर
साफ़- साफ़ दुश्मन दिख रहा है !!!
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आजकल के रिश्ते
मतलब पे हैं टिकते
चंद पैसों की खनक
मजबूत रिश्ते बिकते
क्या भरोसा इन रिश्तों का
आज इधर कल उधर दिखते
तुम भी चालक हो जाओ
चलों ! हम भी सीखते
उन्हें लगता है आजकल अच्छा
मतलब जब नहीं दिखते
तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग में शामिल है
साहित्य में बहलाकर लिखते !!!
अभी अभी चालाकी सीखी है
जिसमें मतलब देखी है
उसमें उत्साह, उमंग गज़ब है
सरल, सीधे लोग में मोहब्बत देखी है !!!
खरीदने वाले सबकुछ खरीद रहे हैं
सोना चांदी हीरे मोती
ईमान और चोटी
बेचने वाले बेच रहे हैं
अपना सबकुछ
ज़मीर, इज्जत,
सम्मान और रोटी !!!
आजकल के रिश्ते
मतलब पे टिकते !!!
गाय की जरूरत नहीं है
क्योंकि बछड़ा देता है
हां, दूध जरूर देती है
गाय
लेकिन बछड़े अब
हल चलाने के काम नहीं आते
इसलिए गाय पालना छोड़ दिया है !!!!
बदला मशीनी युग में
लोगों ने जीवित प्राणी से
उपयोग लेना छोड़ दिया
भोग और उपयोग
जिससे है
वहीं उसके है
कितना समझदार हो गया है
आदमी !!!
आदमी बिकेगा
तभी दिखेगा
अपना स्वाभिमान बेचकर
गिरेगा
चापलूसी करेगा
माना मतलब निकालना
बुद्धिजीवियों का काम है
झूठ, फरेब, सियासी काम है
गिरकर पैसा कमाना
जो समझते हैं
इसी में नाम है !!!!
अभी तो शुरुआत है
मांस खाने की आदत
तड़पाकर खा जाते हैं
जीव व पेड़ों को
एक समान समझकर
संवेदना अंतर नहीं मानते हैं
एक दिन आदमी को खाएंगे
आतंकवादी मानकर
जो जरूरी समझें जाएंगे
अपने तर्कों से
प्रगतिशील विचारधारा की तरह !!!!
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