तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग intellectual-class-poetry

उसके बुद्धिजीवी होने का दावा-

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 उसके बुद्धिजीवी होने का दावा

बिल्कुल सच निकला

उसने झूठ को सच साबित कर दिया

तर्कों के ऐसे ज्ञाता है

बहस में जंग जीत लिया

कल तलक जिस चीज के समर्थन में थे

आज पलट गया है

बहस ऐसे किए

और वो जंग भी जीत गया है

सरकार किसी की हो

व्यवस्था उसकी है

वो जानता है परिवर्तन

भीड़ उसकी है

दया, करूणा, प्रेम

उनके लिए एक छलावा है

असल इरादे छुपाकर रखना

ऊपरी बातें तो

केवल एक दिखावा है

उससे भला कौन लड़े हैं

बहलाना, फुसलाना ,

दिखावटीपन में जो खड़े हैं

हर आदमी बन जाए बुरा तो अच्छा है

लेकिन सोचता हूं

ये जमाने के लिए कितना अच्छा है

ऐसे बुद्धिजीवियों से कैसे बचा जाए?

कैसे निपटा जाए ?

जो गिरे हुए हैं !!!!

-राजकपूर राजपूत

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