सह न पाया एकाकीपन का भार प्रिये
dear-poetry-literature-life !!!
सह न पाया एकाकीपन का भार प्रिये
अधर कशक रही है आ कर ले प्यार प्रिये
जीवन बोझ बना आंसू बहते धार प्रिये
दब न जाऊं कर्ज तले आ उतार दे उधार प्रिये
मैं जग से हारा अब न बचा मेरा प्यार प्रिये
असफलता मिली जीवन में जैसे कोई भार प्रिये
करके याद तेरी चमक ले आती हूं तन मन में
जो तू न हो तो मेरे हृदय में पीड़ा अपार प्रिये
जग का क्या भरोसा पल में आना और जाना है
चलो ! चले हम तुम नील गगन के उस पार प्रिये !!!
dear-poetry-literature-life !!!
अश्रु बहते धार प्रिये
जिस पर तेरा नाम प्रिये
जग से जब-जब हारूंगा
हर हार में तेरा नाम प्रिये
टूट कर बिखर गया है
एक सितारा तेरे नाम प्रिये !!!
आंसू छलकते नहीं
दर्द बहकते नहीं
जो कह नहीं पाया शब्द
आंसू तुम पढ़ते नहीं !!!
बहते अश्रु नीर
अतंस की पीर
कोमल है कठोर नहीं
तुम चीर सको तो चीर !!!!
शायद ! तुम्हें कठोर पुरुष से प्यार है
जो तुम्हें लगते हैं
अपना
जो तुम्हारा भ्रम नहीं है
प्यार नहीं है
फिर भी तुम
उसे खुश करने की कोशिश करते हो
गुलामी की प्रवृत्ति है
तुम्हारी !!!
-राजकपूर राजपूत
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