स्त्री और पुरुष woman-and-man-in-similarity-article-meregeet-iterature-life सबसे दुखद बात है कि ज्यादातर सभी पुरुष एक स्त्री को एक ही नज़र से देखते हैं है । लगभग स्त्री के प्रति नजरिया एकदम स्पष्ट है । जैसे कि कहां बोलना है । कहां चुप रहना है । उसकी मर्यादा, इज्जत ,, उसकी स्वतंत्रता आदि की सीमा निर्धारण में लगभग समान है । ज्यादातर पुरुष ।
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उससे भी दुखद बात है कि ज्यादातर स्त्रियां पुरुष के नजरिए से अपना और अन्य स्त्रियों के प्रति नजरिया बनाते हैं । मानों पुरुष द्वारा दिया गया बंधन उसे सहर्ष स्वीकार है ।
जिसके बल पर ही पुरुष स्त्री पर शासन करता है । एक स्त्री के मुंह से एक स्त्री के लिए निकलते गाली यह बताने के लिए काफी है कि स्त्री के जीवन में एक पुरुष की अहमियत कितनी है । गाली स्त्री के लिए निकलती है न कि पुरुष के लिए । स्त्री के लिए गाली पुरुष का नजरिया है । और एक स्त्री गाली देती है किसी पुरुष की तरह तो स्त्री का सम्मान और स्थान निर्धारित करते हैं ।
समाज स्त्री और पुरुष को एक होने के बाद ही पूर्णता का प्रमाण पत्र देते हैं । जैसे शादियां करा देना । लेकिन उसकी उपस्थिति में । यदि स्त्री और पुरुष प्रेम प्रसंग में पड़कर शादी करते हैं तो उसे समाज मान्यता नहीं देते हैं । हेय और अधूरेपन से आंकते हैं । जबकि स्वयं की उपस्थिति में की गई शादियों में हर पल शामिल होते हैं ।
साथ ऐसे देते हैं कि एक की मृत्यु के बाद दूसरे से शादी करा देने की कोशिश करते हैं । ताकि अधूरापन ना रहे । ऐसी शादियों में प्रेम का होना नगण्य है । बस जानवरों की प्रकृति और प्रवृत्ति को समाजिक नाम देते हैं । जबकि प्रेम विवाह में एक साथी के छूट जाने के बाद पूरा जीवन अधूरापन से उबारा नहीं जा सकता है ।
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