जिसे मैं अपना समझता था - कविता

 जिसे मैं अपना समझता था
What-I-used-to-think-as-my-own-poetry-in-Hindi.

वो केवल एक धोखा था
मेरी मासूमियत उसके लिए
केवल एक मौका था
उसकी सारी अच्छी बातें
केवल एक दिखावा था
उसका सारा अपनापन
केवल एक छलावा था
उसने मुझे ठगा नहीं
गलतफहमी थी मेरी
वो मेरा सगा नहीं
वो कोई क़ातिल-वातिल नहीं
बस उसके अन्दर थी व्यवस्था
जो मुझे पता नहीं
फेसबुकिया विचार से लड़ते थे
जितनी नफ़रत मिली उसे कहते थे
केवल सवाल उठाकर
विचारवान बने थे
वो क्या स्थिरता देगी
जो खुद स्थिर नहीं
मतलब में जीते हैं
दिलों में प्यार नहीं !!!

What-I-used-to-think-as-my-own-poetry-in-Hindi.

इस जहान में 


तेरे दिखावे के अपनापन में
कोई लूट गया इस जहान में
तेरे लिए मामूली-सी बात है
मेरे लिए कुछ नहीं बचा इस जहान में !!!

कुछ गलतफहमियां होती है
प्रेम में
जैसे कोई मुझे चाहत है
मेरे जैसे है
हम दोनो एक है
जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं होती है
भावनाएं
निरंतर किसी पर विश्वास कर बैठती है
इसी को प्रेम हो जाना कहा जाता है !!!!

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