भीड़ से निकल कर -कविता हिन्दी stand-out-from-the-crowd-poetry-in-hindi

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 भीड़ से निकल कर

मैं जब भी ढूंढता हूं
कोई अपना
तब मैं खुद को
अकेला पाता हूॅं
सिवाय तेरी यादों के
तेरे ख्यालों के
मेरे पास कोई नहीं रहता
जिसे मैं बुनता हूं
सुनता हूं अपना दर्द
अपने प्यार की आह
तेरे सामने
तेरी तस्वीर रखकर
मन भर कहता हूॅं
मन भर करता हूं
शिकायत तुझसे
जो कह नहीं पाता हूॅं
तेरे सामने
कभी
अपने प्यार की तड़प को
समझा नहीं पाता हूॅं
अपने दर्द को
अपनी आंखों से
अपने शब्दों से
जिसे कभी
जाहिर नहीं कर पाया
जिसे समझा नहीं पाया
तेरे सामने
इस तरह ख्यालों में सही
तुझे पास पाता हूॅं
अपने जीवन में
पूर्णता का भास पाता हूॅं
भरा पूरा सा लगता है मुझे
सदा अकेले में
तेरे ख्याल आने से !!!

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मैं खो सकता हूं 
भीड़ में शामिल होकर 
जैसे चांद के उग आने पर 
खो जाते हैं 
छोटे सितारे 
इसलिए मैं दूर रहना चाहता हूं 
ध्रुव तारे की तरह 
चांद से 
अलग 
अटल और निश्चित 
अपने स्थान पर 
जिसे पहचाना जा सकता है 
चांद के निकल आने पर !!!!


भीड़ अभी अभी 
गुजरी है 
शोर करती हुई 
जिसमें किसी की आवाजें 
स्पष्ट नहीं थी 
न ही पहचान !!!!
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