जब हमारी समझ नहीं रहती है ।story-social-in-hindi किसी बातों में तो हम अक्सर दूसरों के सुनने लगते हैं । उस वक्त हमारे विचारों का निर्माण हम स्वयं नहीं कर पाते हैं । जिसे मानते हैं समझदार वहीं हमारा निर्माता बन जाता है । हमारी समझ उसकी बातों की सत्यता को स्पर्श नहीं कर पाते हैं । चाहे जो कहें सहर्ष स्वीकार कर लिया जाता है । हमारे द्वारा । हमारा व्यक्तित्व उसके विचारों की अभिव्यक्ति होती है ।
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जैसे कि एक बार मेरा दोस्त (अपने वाट्सअप दिखाकर)मुझसे कहने लगा कि ये देखो धार्मिक आयोजन ,, कितनी भीड़ है ! इन लोगो को करोना नियमों का ज़रा सा भी ख्याल नहीं है । ऐसे आयोजन क्यों करते हैं ? समझ से परे हैं ।
और उसने अपना मुंह अजीब सा बना लिया मानो उसे उन लोगों की लापरवाही से बहुत नफ़रत है । और दुःख भी ।
मैंने कहा- "दिखा । अरे ! ये तो बहुत पुराना फोटो है । बहुत पहले हुआ था । अमुक गांव में । तुम भी यार ।! कहां कहां उलझे रहते हो । अच्छा बताओ हम लोग अपने दोस्त के जन्मदिन की पार्टी में आए हैं तो क्या यहां करोना नियमों का उल्लघंन नहीं हो रहा है । "
वह चुप हो गया । मेरी बातों को बुरा मान गए । और मैंने भी कुछ नहीं कहा । क्योंकि वो उस नफरती ग्रुप से जुड़ा था । जिसके विचारों से प्रभावित था । चुप ही रहा और मैं सोचने लगा कि हम लोग कितने अपने पराए के भाव में उलझे हैं । हमारी सोच कितनी नफरती हो गई है । जो दुसरो की बुराई तो देख सकते हैं , अपनी नहीं । वो समाज उनका नहीं था । जिसके धार्मिक आयोजन से आपत्ति थी
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