मन का विचार

 विचार करना मन का काम है  । अनायास करता है,,  अनवरत करता है  । नफ़रत और प्यार में उलझा हुआ,, सदा  । बात ये नहीं है कि इंसान सोचकर ही सोचे  । उसकी प्रवृति,  उसकी दिल्लगी,,  जहाँ टिकती  है । वही सोचना शुरू कर देते हैं  । जब अवरोध होता है  । वहाँ क्रोध होता है  । नफ़रत पाली जाती है,,  सीने में  । अनवरत  । जो सरल प्रक्रिया है । हमारे मन का । बिना सोचे हम क्रियाशील हो जाते हैं । क्योंकि हमारी चाहत के टुकड़े होने की संभावना जहां होती है । वहीं हमारी समझ सक्रिय हो जाती है । 

यहां बहुत मंहगा है प्यार को संभालना  ,,सीने में  । उससे भी कठिन है दूसरों को देना  । क्योंकि प्रेम के लिए स्वयं को मिटाना पड़ता है । अपनी खुशी नहीं,, प्रेम की खुशी में चाहिए होता है । जो बहुत कठिन है । लोग स्वयं के प्रति सचेत तो हो सकते हैं लेकिन दूसरों के खातिर नहीं । 


राजकपूर राजपूत

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