पर्दे के पीछे जीते हैं लोग Ghazal on social system

Ghazal on social system

 पर्दे के पीछे जीते हैं लोग  

यहाॅं मतलब में जीते हैं लोग


सच झूठ की कोई बात नहीं

केवल सुविधा अपनाते है लोग 


उसके इरादे ठीक नहीं है 

बातों पे विद्वत्ता झाड़ते हैं लोग 


बहुत सरल है उपदेश देना

खुद कहाँ आजमाते हैं लोग

 

चंद किताबों के पन्ने क्या पढ़े 

हर बातों पे सवाल उठाते हैं लोग 


आखिर यकीन करे तो कैसे करे 

खुद को सियासत में छिपाते हैं लोग


उसकी प्रसिद्धि है लेकिन इंसान कहाँ 

दम नहीं बातों पे फिर भी सुनते हैं लोग


तू भी स्थापित हो जाओ अब "राज"

नामवर की बातें सुनते हैं लोग !!

Ghazal on social system

सिस्टम ये है कि रिश्वत भी व्यवहार है

चाय-पानी की तरह लेना भी प्यार है


ये वही लोग हैं जो शिक्षित हैं

कर्तव्य से ज्यादा व्यापार है


समझाएं तो समझाएं कैसे

उसका ज्ञान सिस्टम को मोड़ने को तैयार हैं


जीने के लिए सोचा ही नहीं

नफरतों में ज़ीने को लाचार है !!!


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