बात ये नहीं कि मुझमें बुराई है

Ghazal Social.

 बात ये नहीं कि मुझमें बुराई है

बात ये है कि तुने मेरी बताई है

अगर इतने ही ईमानदार हो तो

क्या बात है तेरी सबसे छुपाई है

बहुत सुविधा है तुम्हें सेलेक्टिव होने पे

कहीं की बातें कहीं और दिखाई है

बहुत बरसे बादल फिर भी प्यासे

ये बादल सदा दुविधा जगाई है

तेरी बातों का मायने खत्म हो गई

फिर क्यों फिजूल बातें बताई है !!!

Ghazal Social

बात ये नहीं है कि मुझमें बुराई है

अभी तुमने अपनी कहां बताई है

समझ रहा हूं तुम्हें भी मुझसे मोहब्बत है

मगर तुने अपने ज़ुबान पे कहां लाई है

गैरों सा व्यवहार है उनका

आंखों में मोहब्बत कहां लाई है !!!!




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