ghazal on love
ऑंखें बोल पड़ी
दर्द सारे खोल पड़ी
जो कह न सका जमाने से
नजरें मेरी बोल पड़ी
फूलों ने खुशबू फैलाया है
देख तितली डोल पड़ी
दुनिया में नफ़रत बहुत है
जहॉं मोहब्बत घोल पड़ी !!!!
ghazal on love
तुम मिलना मुझसे
खुलकर मिलना
जैसे नदी मिल जाती है
सागर में
खुशबू मिल जाती है
हवाओं में
तुम मिल जाना
अपनापन के साथ
मैं भुल जाऊं
अपना अस्तित्व
लेकिन तुम्हें ध्यान रखना है
तुम भी भुल जाना
अपना अस्तित्व
क्योंकि यहां चालाकियों से
घूलने और मिलने वाले लोग
बहुत हैं !!!
उसकी हर बात कही सही थी
मगर उसके चरित्र में
दिखा नहीं था
बातें सुनकर
लगा मुझे
ये आदमी सही था
बस वक्त लगेगा
उसे मतलब निका
ल कर जाने में
तब तक !!!
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