सब्र किया मैंने I have been Patient, Poem

I have been Patient, Poem 

 सब्र किया मैंने

तेरे इंतज़ार में

एक-एक पल को

गिना मैंने


कब आओगे

मैं नहीं जानता

प्यार में कुछ मिला 

मैं नहीं मानता

मगर तेरे प्यार में

बहुत दर्द पाया मैंने


तुम आओगे

इसी राह से

इसी आशा और विश्वास से

पलकें बिछाया मैंने


हुक सी उठती है

उम्मीद जब टूटती है

फिर भी

खुद को समझाया मैंने

सब्र किया मैंने !!!

I have been Patient, Poem


सबूत क्या दूं 

मैं अपने प्रेम का 

तुम महसूस करों 

यदि नहीं कर पाए तो 

कुंठित है 

मेरा प्रेम 

और व्यर्थ !!!!


सब्र किया मैंने 

जैसे करती है 

धरती 

बादलों का 

लेकिन कभी-कभी 

कई रीतू

व्यर्थ निकल जाती है 

सब्र अधूरा 

रह जाता है !!!!


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