Ghazal, he did not Think at All
ज़रा सोचा नहीं उसने
आसानी से कह दिया उसने
रिश्ते हमारे मतलब पे टीके थे
पूर्ति के बाद छोड़ दिया उसने
उससे चोट लगी थी गहरी मुझे
दे कर ज़ख्म सॉरी कह दिया उसने !!!
Ghazal, he did not Think at All
ज़रा सोचा नहीं उसने
प्रेम अनंत है
जहां स्वयं का अंत है
शून्य सा आकार
लेकिन माना नहीं उसने
स्वयं की पहचान को
स्वीकारा उसने
इस तरह अंतर कर डाला
अपने और मेरे बीच में !!!
इतनी भी अच्छा नहीं
प्रेम में मैं कच्चा नहीं
चांद तारे तोड़ने की बातें करते हो
असंभव वादा तेरा अच्छा नहीं !!!
जिसे समझौते के रिश्तों पे भरोसा है
सबसे ज्यादा प्रेम के लफ्ज़ परोसा है
जानते हैं जब तक सुविधा है
रिश्ते टूटेंगे जब दुविधा है !!
ज़रा सोचा नहीं उसने
इतनी सियासत अच्छी नहीं
जो दोगला है
उससे मोहब्बत अच्छी नहीं
उसकी चाल में फस गया
उसकी कीमत अच्छी नहीं !!!
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