दिल दुश्मन है poem on love Enemy

poem on love Enemy 

 दिल दुश्मन है

जिसमें प्यार नहीं

उसी को चाहता है

दिमाग समझ गया

मगर दिल कहॉं मानता है

खिंचा चला जाता है

उसके ख्यालों में,ख्वाबों में

रोता है और उसी को चाहता है !!!!

poem on love Enemy

कुछ लोग प्रेम बिना जीवित रहते हैं 

न देश से प्रेम 

न जमीन से लगाव 

कभी न कह पाते 

मिट्टी अपना है 

न स्त्री से प्रेम 

न जानवरों से सहानुभूति 

जब भी जीते हैं 

अपने लिए जीते हैं 

ऐसे लोग क्या समझदार होते हैं 

जिसे अपना लिए प्यार होते हैं 

कितने विश्वास के लायक होते हैं !!!!


विश्वास के लायक वे नहीं 
समझौते के रिश्तों में प्रेम नहीं 

एक बार मुंह खोलेंगे तो 
शिकायत दर्ज प्रेम नहीं  !!!!

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- राजकपूर राजपूत 

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