वहॉं मैं अकेला था poem on life_alone

poem on life_alone 

 सिखाया मुझको दुनिया ने

जिस रास्ते पे वो चलते हैं

बताया मुझको दुनिया ने

जिस बात को वो मानते हैं

एक भीड़ की आवाजों में

खोने के लिए 

समझाया मुझको

इसी राह में सब चलते हैं

भेड़ की तरह

बिना समझे

लेकिन मैंने नहीं सुना

उसके रास्ते को मैंने नहीं चुना

क्योंकि वो मेरी मंजिल नहीं थी

मेरी राह नहीं थी

जहॉं मेरा सुकून नहीं था

वहॉं मैं अकेला था !!!! 

poem on life_alone

भीड़ 

भेड़ों का हो तो 

कोई योजना नहीं है 

यदि कुत्तों का है तो 

कोई साजिश है !!!!


भेड़ बकरी 

घास खाते हैं 

इसलिए वे 

कुत्तों के समूह के पास चला जाता है 

यही सोचकर 

कुत्ते भी घास खाते हैं !!!!!


सिखाया तो दुनिया ने 

लोकतंत्र की मानसिकता 

भीड़ से है 

भीड़ में मोमबत्ती जलाओ 

अकेले में जलाओगे तो 

निरर्थक मानें जाएंगे !!!!

इन्हें भी पढ़ें 👉 मेरी सारी कविताएं 

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ