जिद Jid on thought

Jid  on thought जिसके विचारों में उदारता नहीं है । नयापन नहीं है । जो कहते हैं ज़िद के आगे जीत है,,याद रखिए वो मुर्ख भी है । जिसमें आगे पीछे की सोच नहीं । न परिस्थितियों का ज्ञान होता है । बिल्कुल मुर्ख ही होता है । जिसने उन विद्वानों, साहसिक इंसानों की नकल करके कहते हैं । जिसने अपने कार्यों को बुद्धिमत्ता से संपादित किया है । सरलता पूर्वक । 

Jid on thought

जिद ऐसा नहीं कि हर बातों को अनसुनी किया जाय । जब किसी की नहीं सुनी जाती है । वहां आदमी खुद को श्रेष्ठ और बड़ा बनाने की होड़ करता  है । जिसमें अन्य मानवीय गुणों का अभाव होता है । अहंकार का भाव कूट-कूट कर भरा होता है । इन्हीं भावों के कारण से मुर्खता कर बैठता है । 

अत्यधिक जिद मुर्खता है । यदि किसी चीज से लगाव एकतरफा किया जाता है । भाव आवेश से कही गई बातें या कार्य समय के साथ पछतावा देती है ।‌‌

जिद  - एक शक्तिशाली शब्द है । जो सबको पसंद भी है । बचपन में कई बार अपने बड़ों से सुन चुके हैं । कभी कभी टोकने वाले भी लोग होना चाहिए । जो हमें मुर्खता पूर्ण काम करने से रोकें । 





Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ