Socia-jane-kis-baat-ka-gurur-hai-सोशल मीडिया का जमाना है । जिसके फायदे बहुत है तो नुकसान भी कम नहीं है । लोग अपने ज्ञान को रखते हैं लेकिन अपनाते नहीं है । ऐसा लगता है कि जैसे दुनिया में वह सब कुछ जान गए हैं । उसके फायदे/नुकसान को । जिसके कारण उसमें अजीब सी उदासीनता दिखाई देती है । जिसे स्वयं तोड़ना नहीं चाहता है । अगर तोड़ दें तो उसे डर है कि कहीं वह ग्वार न हो जाए । इसलिए सबमें अविश्वास भर गया है ।
इस पर कविता हिन्दी में 👇👇
Socia-jane-kis-baat-ka-gurur-hai
जाने किस बात का गुरुर था
नादान इस बात पे जरूर था
न बात करने के सलीके सीखें
मुॅंह खुल गया तो फिर शुरू था
सवाल ही सवाल जवाब नहीं
वो आदमी बहुत मुर्ख ज़रूर था
दूसरों को सीखाने में मजा है
अपनी बारी में शर्मिंदा ज़रूर था
पढ़ें लिखे लोग हैं अब
मगर वो तर्कों से मगरुर था
अहंकार अपने ज्ञान का
सोशल मीडिया पर जरूर था
न सीखा कभी परिवार चलाना
उसके पास दूसरों के लिए ज्ञान जरूर था
सवाल उठाना भी अब कला है 'राज'
अपने पराएं में अंतर ज़रूर था !!!
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