घर मुझे ढूंढता है Ghazal Zindagi

Ghazal Zindagi

 घर मुझे ढूंढता है

शाम मुझसे पूछता है

घर कब आओगे

दरवाजे मुझसे पूछता है

थक गई है जिंदगी

आराम मुझसे पूछता है

कभी चैन भर सो जाओ

थकावट मुझसे पूछता है

बहुत हो गई दौड़-धूप

सुकून मुझे पूछता है

वो मेरे चाहने वाले शक न कर

मेरी चाहत कितनी पूछता है 

आरोप लगाया अपनी ग़लती छुपाने के लिए

जवाब कैसा है पूछता है

इतनी भी हंसी अच्छी नहीं

मेरे सीने का दर्द पूछता है

वो आकर सामने बैठ गए

दिल की बात इशारों में पूछता है

सियासी बहस में माहिर हैं

खाली मुझसे सवाल पूछता है

अपने मोहल्ले से परिचित नहीं

पड़ोसी का पता पूछता है

उसकी दीवानगी व्यस्तता में गायब है

खाली माहौल में मेरा हाल पूछता है !!!

Ghazal Zindagi

घर मुझे ढूंढता है

जो कभी छोड़ आए थे

पीपल बरगद

मुझे ढूंढता है

खेतों की हरियाली

शाम की लाली

कोयल की बोली

काले कौवे की कांव

नीम की छांव

मुझे ढूंढती है

अपने पास बुलाती है !!!

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