वो मीठी-मीठी बातों से Ghazal Politics

Ghazal Politics

 वो मीठी-मीठी बातों से इरादे थोप रहा था

आदमी चालाक है पीछे से छूरा घोंप रहा था

बनावटी हॅंसी है उसकी बनावटी तारीफ हैं

नादान समझ के अपना काम हमें सौंप रहा था

चंद सियासत क्या जान लिए समझदार मानते हैं

अपनी गलतियों को दोगला हमें सौंप रहा था

ये अब की तकरीर भी अजीब है "राज"

जवाब उसको देना है सवाल हमें सौंप रहा था !!!

Ghazal Politics

आजकल के लोग 

थका है तो

अपनी ही मानसिकता से

उसे किसी ने थकाया नहीं है

न ही कोई नेक इरादे से असफल है

असफल है तो सिर्फ

अपने मतलब साधने में !!!


उसे इस बात की परवाह नहीं है

सामने वाले क्या सोचेंगे

इरादों से लार टपक रहा है

लेकिन मीठी-मीठी बातों से

ढक रहा है

जिसकी आंखों में पट्टी बंध गई

उसकी सियासत में फंस गई

चालाक लोगों की कोशिश यही है !!!!

लोग पकड़ लेंगे

झूठी बातों को

मीठी बातों के ज़हर को

फिर खड़ा हो जाएगा

निर्लज्जता से

बहलाने फुसलाने के लिए

फंसाने की कोशिश होगी

निरंतर

सीधे-सादे लोगों को !!!!


चालाक लोगों ने

दोगलापन को इस तरह

इस्तेमाल किया है

अपनी बहादुरी का प्रतीक बना डाला है !!!

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