River's Edge Poem
नदियों की धार
सहज नहीं बह रही है
अपने अल्हड़पन में
एक ठहराव है
उसके पानी में
जगह-जगह बने हैं
एनीकेट
जो रोक देते हैं
उसकी गति को
उसकी मस्ती को
इंसान अपने स्वार्थ में
मनचाही दिशा में
जिससे नदियॉं
गतिशील नहीं है
अपने पथ में
और नदियों के तले पर
कुंडा करकट इकठ्ठा हो गए हैं
जो धीरे-धीरे
नदियों के अस्तित्व पर
सवाल खड़े कर दिए हैं
क्या कभी नदियॉं बहती थी
अपने वेग में
या फिर ऐसे ही है
ठहरी हुई
सदा से !!!!!
River's Edge Poem
हर चीज़ को
रोकने को तैयार है
आदमी
नदी में
एनीकेट बनाकर
पर्वतों को काटकर
हवाई जहाजों से
आसमान चीरकर
हवा में जहरीली गैसें छोड़कर
जो सिर्फ शोषण करते हैं
संतुलन नहीं
जब मन भर जाता है
आदमियों को खाने को तैयार हैं
आदमखोर की तरह !!!
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