सबकुछ है मगर मन नहीं समझता

कोई यह नहीं समझता
सबकुछ है मगर मन नहीं समझता
चाहत कहॉं ठहरेगी
अपना मुकाम नहीं समझता
सवालों का सवाल है यहॉं
जवाब नहीं समझता
बहस में उलझे रहे सभी
किसी का सुझाव नहीं समझता
चालाकियॉं है सबके सीने में
दिल के जज़्बात नहीं समझता
मतलब निकालने में माहिर
इंसानों का दर्द नहीं समझता
अब के दौर ही ऐसा है राज़
रिश्तों का मतलब नहीं समझता
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