अकेला हर इंसान हुआ Every Man Alone Poem

Every Man Alone Poem 
मनवा रेगिस्तान हुआ
अकेला हर इंसान हुआ

तुलसी के वास्ते जगह नहीं
क्रांकिट के मकान हुआ

जमाने की दौड़ अजीब है
हर शख्स अनजान हुआ

सूख गए हैं ऑंसू सभी के
दिमाग से दिल नादान हुआ

प्यार के लहजे भूल गए हैं
'राज' तेरा क्या अरमान हुआ !!!

Every Man Alone Poem


कहने के लिए ये शहर है
लेकिन जीने के लिए ज़हर है
बैठ कर न बातें हुई कभी
मगर भीड़भाड़ का नगर है
हर शख्स अपनी धुन में
साथ-साथ मगर बेकार है !!!!

भीड है मगर 
उदास है
चकाचौंध है मगर 
उदासी का कोने में
निवास है 
सोशल मीडिया पर मिलते हैं
सोचो मगर कितने दूर कितने पास हैं
वो झूठ बोल कर मुस्कुराते हैं
उनके इरादे कितने ख़ास हैं !!!
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