Poem on so Called Intellectual
तथाकथित बुद्धिजीवियों के विचारों में
एक अजीब-सी थकावट है
क्योंकि उसके पास
कोई सिद्धांत नहीं है
जिस पर वो टिकें
जानवरों की प्रवृत्ति से
जीते हैं इंसान
जिसके पास दिल नहीं
केवल बौद्धिक तर्क है
उलझाने के लिए
याद रहे
ठहरने के लिए नहीं !!
Poem on so Called Intellectual
हर बात की अपनी कहें
कष्ट जो न सहे
जो उसकी सुविधा में बाधक है
भला-बुरा कहें
ज्ञानचंद की कई परिभाषाएं
मुर्खों से यहीं आशाएं !!!
अभी तो उसने पत्ते नहीं खोले हैं
बहला फुसलाकर रहें हैं
जब तुम बदल जाओगे
उनके जैसा बन जाओगे
महान बुद्धिजीवी
बन जाओगे !!!
बहुत कुछ तोड़ा है
बहुत कुछ छोड़ा है
तथाकथित बुद्धिजीवियों ने
सत्य के बदले में
अपना हित
सर्वप्रिय कर रक्खा है
जिसे स्थापित करने की कोशिश में
भ्रम, संशय
नफरती आलोचनाओं को छोड़ा है !!!
तथाकथित बुद्धिजीवियों ने
हर जगह रोटी देखें
सबसे जरूरी समझा
चाहे देश की सुरक्षा हो
देश का हित हो
रोटी जरूरी है
रोटी देखते देखते
उसने अपना मतलब देखें
हर जगह
नई सोच मानकर
जिसे अधिकांश लोगों ने स्वीकारा
नतीजा आपके पास है
जैसे मतलबी लोगों के
आप खास हैं !!!!!
इन्हें भी पढ़ें 👉 आदमी और उसके आदर्श
---राजकपूर राजपूत''राज''
0 टिप्पणियाँ