आदमी की लालसा

जब स्वार्थ की लालसा हो कहीं पर
सच, सच नहीं दिखता है कहीं पर

अब आदमी के लफ़्ज़ों में दोराहे है
सुविधा मिले धोखा मिलेगा कहीं पर

इसी उम्मीद में जीता रहा मैं राज
शिद्दत से चाहा हूॅं तो मिलेंगे कहीं पर




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